तंत्र का शब्दार्थिक अर्थ होता है एक प्रणाली, प्रणाली किसी कार्य को संपन्न करने की हम हमारे मनुष्य शरीर में होने वाली कई प्रणालियों के विषय में जानते हैं जैसे कि स्वास तन्त्र पाचन तंत्र आदि
तंत्र का उद्भव भारतीय हिंदू परंपरा से हुआ था तंत्र का वर्णन वेदों में और कई ग्रंथों में मिलता है जैसे कि रावण संहिता अगम-निगम तंत्र ग्रन्थ आदि । ग्रंथों में यह जानकारी मिलती है की सबसे पहले तंत्र का ज्ञान भगवान शिव ने माता पार्वती को दिया था उसके बाद यह ज्ञान अलग-अलग गुरु परंपराओं के अनुसार आगे की पीढ़ियों को मिलता रहा आज तंत्र में अलग-अलग रूप परंपराओं के हिसाब से कई बदलाव किए गए हैं और सभी के अलग-अलग मार्ग बन गए हैं जैसे कि शैव संप्रदाय शाक्त संप्रदाय वैष्णव संप्रदाय गाणपत संप्रदाय कोई संप्रदाय अघोर संप्रदाय आदि हालांकि यह सभी तंत्र की शाखाएं एक ही जड़ से निकली है फिर भी इन में तौर तरीके अलग-अलग हैं तंत्र को अलग-अलग संप्रदाय होने अलग अलग गुणों के आधार पर विभाजित करा है कुछ संप्रदायों में तंत्र के विधान सतोगुण है तो किसी में तमोगुण ई तो किसी में रजोगुण
तंत्र - इस शब्द का मूल शब्द तन है पदार्थ जो हम हमारे शरीर से करते हैं । अथार्त भौतिक रूप से घटित होने वाली क्रिया ।
मंत्र इस शब्द का मूल मन है पदार्थ जो हम मन से करते हैं। मंत्र ऐसे शब्दों का समूह होता है जिनसे वायुमंडल में ध्वनि तरंगें पैदा होती है और इन ध्वनि तरंगों से इच्छित शक्तियां आकर्षित होती है ।
यन्त्र - यंत्र का सरल भाषा में अर्थ कोई मशीन होता है पर तंत्र की भाषा में देखें तो यंत्र का अर्थ कुछ विशेष आकारों और कुछ विशेष अंको के द्वारा बनाए गए चित्रों में लिया जाता है
तंत्र के विषय में अधिक जानकारियां आगे आने वाली पोस्टों के द्वारा दी जाएगी
🖋️ अमोघनाथ
जय महाँकाल